Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
दक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलयषिजी -
- दारुए सारही कण्हवासुदेवेणे एवं कुरोसमाणे हट जाव पडिसुणेइ २ ता अमर
ककं रायहाणि अणुषविसति २ त्ता जेणेव पउमणाहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव बहावेइ२त्ता-एवं वयासी-एसणं सामी! मम विणयपडिवत्ती, इमा अण्णा मम सामिस्स समुहाणंति तिकटु-आसुरुत्ते वामपाएणं पायपीढं अवक्कमति २ त्ता कोंताग्गेणं लेहं पणामेति २ ता जाव कूवं हवमागए ॥ ततेणं से पउमणाभेराया दारुएणं सारहिणा एवं बुत्ते समाणे असुरुत्ते तिवलिं भिउडिं णिडाले साह?
एवं वयासी-अप्पणामिणं अहं देवाणुप्पिया ! कण्हवामुदेवस्स दोवर्ति, एसणं अहं ऐसा वचन मुनकर दारुण सारथी दृष्ट तुष्ट हुवा. उन के वचन मान्य किये. और अमरकंका राज्य प्रवेश कर पद्मनाभ राजा की पाम गया. उनका हाथ जोडकर जय विजय शब्द से वधाया और कहा अहो । सामिन्! यह मेरी प्रवृत्ति है. परंतु मेरे सामीकी यह आज्ञा है यों कहकर आमुक्त बनार बाये पांचसे पाद पीठिका को ठोकर मारकर भालाके अग्रस लख देकर कहा, अरे अप्रार्थित की प्रार्थना करनेवाला यावत्
द्रौपदी को सहाय के लिये कृष्ण वासुदेन व पांच पंडवों आये. दारुण सारथि के ऐसे कहने पर है पद्मनाभ राजा आसुक्त हुआ त्रिवलि सलर में चहाकर बोला अहो देव नुप्रिया में कृष्णवासुदेव को द्रौपदी
प्रकाशक-राजाबहादर लारा सुखदेवमहायजीवासा 10
अर्थ
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