Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मा
- अनुवाहक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
जाव'भग्गणावसणं कयं ॥ १५७ ॥ ततेणं मे कण्हवासुदेवे कौति पिउत्थंए एवं वयासी-जणवरं पिउत्था दोवतीदेवीए कत्थई मुइंवा जाव लभामि,तोणं अहं पातालाओवा भवणाओवा अद्वभरहाओवा समतओ दोवतिं देवि साहत्यि उवणाम त्तिक, कतीपिउत्थिं सकरेति, समाणेति, सक्कारत्ता समाणत्ता जाव पडिविसज्जेति ॥ ततेणं सा कोंतीदेवी कण्हवासुदेवेण पडिविसजिया समाणी जामेवादेसि पाउन्भूया तामेव दिमि पडिगया ।। ३५८॥ ततेणं से कण्हवासुदेवे कोडुबिय पुरिसे सद्दावति २ ता एवं बयासी गच्छहण तुम्भे देवाणुप्पिया!वारावीतनयरिं एवं जहा पंडु तहा घोसणं घोसावेति
जाव पञ्चप्पिणंति ॥ पडुस्स जहा ॥१५८॥ ततेचं कण्ह वासुदेवे अन्नयाकयाइ अंतो मैं चाहती हूं ॥ १५७ ॥ कृष्ण वासुदेव भूपा कुंनी को ऐमा बोले कि , पदो देवी की किमी स्थान पा श्रुति या प्रवृत्ति मिलंगी नो पातालमें भे, भवनों में से अथवा अर्ध भरतक्षेत्र में से जिस स्थान होगी उम स्थान से मैं उस को मर हाथ स ल गा. यों कहकर भाजीका आदर सत्कार कर यावत् विमर्जित की. कुंनी देवी भी वहां से रजा मिलने में अपने स्थान पीछ आई ॥ १५८ ॥ कृष्ण वासुदेवने कौटम्बक पुरुषों को बोलाये और कहा कि द्वारिका नगरी में पडह बजादो और जैण्ड जाने द्रौपदी के लिय उदघोषणा कराई थी वैसे उदघोषणा करो. यामत् मुझ मेरी आज्ञा पछी दो, उनमेंने भी वैसे है. पदह बनाया
पाक गजाबहादुर लालाखद वस हायजी उचालाप्रमादजी.
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