Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक- लब्रह्मचारीमुनि श्री अमोल : ऋषिजी से
मझेणं णिग्गच्छइ रत्ता कुरुजणवयस्स मज्झं मज्झणे जेणेव सुरट्टा जणवए जेव बारावती गयरी जेणेव अंगुजाणे तेणव उवागच्छइ रचा हस्थिखंधातो पञ्चोरुहति २त्ता कोडुषिय पुरिसे सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-गच्छहणं तुमं देवाणुप्पियाजियोव बारावतिणयरिं ६५८ नेणेव अणुपविसहरत्ताकण्हवासुदेवं करयलं जाव एवं वयासी-एवं खलु सामी!तुम्भपिउत्था कौतीदेवी हथिणाउराओ नगराओ इह हव्व मागया,तुभं दसणं कखति॥१५४॥ततणं कोडंबियपुरिसे जाव कहेति २ ॥१५५॥ तसेणं कण्हेवासुदेवे कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोचा णिसम्महट्टतुटे हस्थिखधवरगए हय गय जाव वारावताए मञ्झं मझेणं राष्ट्र देश में द्वारिका नगरी में गई. और उम की बाहिर अंग उद्याम में आकर हाथी पर से नीचे उतरी. वहां कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा कहा अहो देवानुप्रिय : तुम द्वारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव की पास जाओ और उन को हाथ जोडकर कहो कि अहा स्वामिन! तुम्हारी पितृस्वमा (भूआ) हस्तिनापुर नगर से द्वारिका के बाहिर अंग उद्यान में आये हुवे हैं और तुम को मिलना चाहते हैं॥१५॥ कौटुम्बिक पुरुषोंने यावत् वैसे ही कहा ॥ १५५ ॥ कृष्ण वासुदेव कौटुम्बिक पुरुषों की पास से ऐमा. मुनकर हृष्ठ तुष्ट हुए और हाथी पर स्वार होकर हय, गज कारत् परिवार सहित द्वारिका नगरी की।*
काशक रीजाबरादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसाद जी
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