Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
143. कडु जएणं विजएणं वडावेहि रत्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे
दुपयसरन्नोधूयाए चुलणीए अत्तयाए धट्ठज्जुण कुमारस्स भगिणीए दोवतीए रायवरकन्नायाए सयंवरे भविरसंति,ततेणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! दुपयरायं अणुगिण्हमाणा अकालपरिहीणे चव कंपिल्लपुरं णगरे समोसरेह ॥ ९४ ॥ ततेणं सेदुए करयल जाव कटु दुपयस्मरण्णो एयमढेंविणेएणं पडिसुणेति २ त्ता जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ२
त्ता कोटुंबिय पुरिसे सद्दावेति २त्ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भोदेवाणुप्पिया! घाउघट E: आसरह जुत्तामेव उवट्टवेह ॥ जाव उवट्ठवेति । ततेणं से दूए हाए जाव सस्सिरीए
से वधाना उन को बधाकर ऐसा बोलना अहो देवानुप्रिय ! कंपिल पुर नगर में दुपद राजा की पुत्री चूलणी रानी की आत्मज धाढर्जुन कुमार की भगिनी द्रौपदी राजा वरकन्या का स्वयंवर होगा इम में द्रुपद राजा पर आप अनुग्रह कर के विलम्ब रहित शीघ्र मेव कंपिल पुर नगर में पधारना. ॥ ९४ ॥ तब दूतने हाथ जोडकर दूग्द राजाकी इस आज्ञाको प्रमानकर वहां से अपने गृह गया,और अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बांलाकर कहा अहो देवानप्रिय ! चार घंटे वाला अश्वस्थ शीघ्रमेव तैयार करो उनोंने वैसे ही रथ ही तैयार किया
तत्पश्चात दुतने स्नान किया, यावत् चार घंट वाला अश्वस्थ पर बैठ कर हथिारों से सज्ज बने हुए 1 यावत् प्रहरणलेने वाले पुरुषों की साथ परक्रा हुवा कंपिल्ल पुर नगर की मध्य बीच में नीकलकर .
* अनुवादक-बाळप्रमचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिणी
प्रकाशक-शंजाबहादुरकाला मुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org