Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
पटा ज्ञाताधर्म कथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
पडिणिक्खमंतिरत्ता जेणेव सया मया आवासे तेगेव उगगच्छति ॥ ११८ ॥ ततेणं धटुजुगे कुमारे पचपंडव दोवति रायवरकण चाउग्घट आसरहं दुरुहति २त्ता कंपिल्लुपुरमझम झणं जाव सयं भवणं अणु विमति २ ॥ ततेणं से दुवएराया पंचपंडये दोवर्ति रायवर कण्णयं पट्टयं दरुहति २ सा सेयपीएहिं कलमहिं मजावति २त्ता
अग्गिहामं करइ २ त्ता पचण्ह पंडवाणं दावईए य पाणिग्गहणं करावेइ ॥ १९ ॥ ततण से दवएराया दोवतीए रायवरकण्णाए इमं एयारूवं पीतिदाणं दलयात तेजहा अहिरणकोडिओ जाव अट्ठपेसणकारीओ दासीचडीओ, अण्णच
विउलं वाक गग जाव दलयति ।। १२० । ततेणं से दाएराया ताई वासदेव मील कर जहां अपने शयनाशयन थे वहां आये ॥ ११८ ॥ अब धृष्टणु ने पांच पांडवों व द्रौपदी राजकन्याका चार घण्टवाला अश्वरथ पर बैठा र कपिलपुर नगर की वाच में होते हुने अपने भवन में लाये. वहां रद सनाने द्रोपदी का पांच पांडव की साथ एक पाटपर बैठाकर श्वे। पीत कलशों से स्नान कराया और अनिदाम करवा कर पांच पांडा की साथ द्रौपदी का पाणिग्रहण करवाया ॥ १.१९ ॥ दुद सजाने द्रौपदी को प्रीतिदान दिया नद्यया-आठ ऋोड हिरण्य यावत आठ प्रपणकारी दासियों और अन्य विपुल धन कना यावत् दिया ॥ १२० ।। द्रुपद राजाने विपुल अशादि बनाकर नत्र गंध
द्रौपदी का सातवा अध्ययन 42
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org