Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
4
६२१
षष्टांग नाताधर्मकन्या का प्रथम श्रुतस्कन्ध 41
महया २ सद्देणं उग्धोसेमाणा २ एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कलंपाउप्पभाए दुपयस्सरन्नो धूयाए चूलणीए देवीए अचयाए घट्टजुण्णस्स भगिणीए दोवतीए रायवर
कन्नाए सयंवरे भविस्प्तति,तं नुब्भेणं देवाणुप्पिया! दुवयं सयाणं अणुगिण्हमाणा व्हाया जाव विभूसिया हत्थिखंधवरगया सकोरंट मल्लदामेणं छत्तेणं धारिजमाणेणं सेयवर चामरेहिं महया हय गय रहमहया भड चडगरेणं जाव परिक्खित्ता जेणेव सयंवरे मंडवे तेणेव उवागच्छइ २ ता पत्तेयं २ णामके आसणेमु निसीयह २ दोवति
रायवरकन्नं पडिवालेमाणा २ चिट्ठह घोसेणं घोसेह मम एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह . शब्द से उदघोषणा करते हुरे ऐमा बोलो कि कल प्रगतम द्रुपद राजा की पुत्री चूरणी देवी की आत्मजा व धृष्टर्जुन की भगिनी द्रौपदी राज कन्या का स्वयंवर होगा इस से अहो देवानुप्रिय ! तुम द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुने स्नान कर पावत् सब अलंकार से विभूषित पनकर हाथी की पीठ पर बैठकर कौरंट क्ष की माला वाला छत्र सहित श्वेत चामर य गज, रथ व बडे २ भट चेटक के परिवार सपरिवरे स्वयंवर
में आकर अपने २मासन पर बैठ जाना. और वहां द्रौपदीराजकन्याकी मार्ग प्रतीक्षा करते हुवे रहना. इम तरह उद्घोषणा करके मुझे मेरी आशा पं दो. कौटुम्बक पुरुषोने वैसे ही करके उन को उन की
. द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
अर्थ
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org