Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
Hदंपरी
अंतेउरियातो, सल्वालंकार विभूसियं करेंति किते वरपायपत्तणे उर जाव चैडिया चक्कवाल . : महतरगविंदपरिक्खिता अतिउराउ पडिणिक्खमति पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहि: .. रिया उक्टाणसाला जेणेव चाउग्धंटे आमरहे तेणेव उवागच्छइ २त्ता कीडावियाए
संहियाए साई बाउग्घट आमरहं दुरुहति॥ततणं से धटुजुर्ण कुमार दोवतीए रायवर
केण्णाए. सारस्थय करेति ॥ १३ ॥ ततणं सा दोबतीरायवरकन्ना कपिल्लपुरं विभषित की, पांच में श्रेष्ट नेपूर धारन किये यारत् दासियों के समुह से फरवरी हुई अंत:पुर मे नीकलकर जहां बाहिर की स्पस्थान शाला थी वा आई. वहां क्रांडा कराने वाली पात्री व दासिको साथ चार घंटा वाला अश्वरय पर वह बैठी. धृष्टर्जुन कुमाग्ने द्रौपदी के मारथी का कार्य किया. ॥ १३ ॥ द्रोपदी
भाणियध्वं जाव धूर्व डहइश्त्ता वाम जाणु अच्चइ रेत्ता दाहिणे जाणुं धरणिवलास णिसायइ २ ता तिक्वुत्तो मुद्धाण धणि3 तलीस णिवेसेइ दत्ता इस पच्चुणुमई २ ता करयल जाब तिकट्ट एवं वयासी णमोत्थुण अरहताणं-भगवताणं आदिमराणं
तित्थगसणं सयंसंबुद्धाणं. जाव ठाणं संपत्ताणं बंदइ मेसाई वंदित्ता नमंसित्ता जिणधराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता इतना पाठ } नविन प्रतोंमें प्रक्षेप किवा मालूम होता है. नहींतर प्राचिन प्रतीमें भी इस का उल्लेख मील सकता. और भी द्रपद राजा {: किसी प्रकार से श्रीवक अथवा सम्यक्त्वी होने का सिद्ध नहीं होता है. उन के संतान में ऐसी भावना कैसे आसके. इस से ale: यहां जिन प्रतिमा का का अर्थ अपने कुलदेवों हो सकता है, और सासारिक कार्यों में कुलंदयों की पूजा करने की रीति 14 अद्यापि पर्यंत विद्यमान है,...
झानाधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध HR
...
द्रं पदो का सोलहवा अध्ययन ११
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org