Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
देवगणियत्ताए उववन्ना ॥ तत्थेगतियाणं देवीणं णवपलिआवमाइ दिइ पण्णत्ता, तत्थणं सुकुमालियाए देवीए नव पलिओवमाइं ट्रिती पण्णत्ता ॥ ८७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवदीवे भारहवास पचालसु जणवएसु कंप्पिल्लपुरेणामं
गरेहोत्था वण्णतत्थणं दुवतेणाम रायाहोत्था वण्ण।तस्सणं चुलणी णामं देवी होत्था धटग्जुणेणामकुमारे जुवराया॥८८॥ततेणं सा सुकमालियादेवी ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव चइत्ता इहवे जंबुद्दीवेदीवे भारहेवासे पंचालेसु जणबएसु कंप्पिल्ल
पुरे नयरे दुवयसरन्नो चुलणीए देवीए कुत्थिसि दारियचाए पवाया !॥ ८९ ॥ अपरिग्रही देवी पने उत्पन्न हुई, वहां किननेक देवीयों की नव पल्य पम को स्थिते हैं वैसे ही मुकुमालि का देवी की नव पल्पोपम की स्थिति कही. ॥८७ ॥ उस काल उस समय में इस जम्बू द्वीप के
भरतक्षेत्र के पांचाल(पंजाब)देश में कपिलपुर नामक नगर था. वहां द्रौपद गजा राज्य करता था, उम को Fचुलणी नाम की रानी थी व धृष्ट र्जुन कुमार युवराजा था ॥ ८८ ॥ सुकुमालिका देवी उस देवलोक में
मे आयुष्य, स्थिति व भवका क्षय करके इम जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र के पांचाल देश में कपिल पुर नगर | द्रापद राजा की चरणी देव राणी की कुक्षि में पुत्री पने उत्पन्न हुई. ॥८९॥ चलणी देवी को साढे नव
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
|
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org