Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अहेव तेयलिणाए. सुब्धयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाड मो जाच अणुपविटा तहेव जाव सुकुमालिया पडिलाभेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु अजातो अहं सागरस्स अणिट्ठा जाव अमणामा नेच्छतिणं सागरए दारए मम नाम वा जात्र परिभागवा, जस्स जस्स वियणं दिजामि तस्स तस्स वियण अगिट्ठा जाव अमणामा भवामि, तुब्भेणं अजाओ बहनायाओं एवं जहा पोटिला जाव उबलद्धे जणं अह
सागरस्स दायरस्स इट्टा कता जाव भवेजामि ॥ अआओ तहेब भणति तहेव साविया परिभ्रमण करती हुइ नागरदत्त शेठ घा आइ. उन को देखकर मुझुमारिका हृष्ट तुष्ट हुई. अपने आमन से उपस्थित हुई. मात आठ पान सन्मुग्न गाड च विपर अनादि देकर एका बोठी अहो आर्यायो।
पागादत्त पुत्र को अनिष्ट यावत् अपाय हूं. मगर पत्र पग नाम व रात्र मुना भी नहीं चाहता है तो देखने का कहना है. क्या तत्पश्च त जिन के २ मन की बात को भी मैं अभिष्ट गावत् अपनाम हुई. अहो आर्याभो ! तुप बहत पंडिता है वह साहला जैसे .यात् एमात्र प्रयोम बगैरह कहो कि जिस से मैं सागर पत्र को इष्टकारी होवू. आयओं न उत्तर दिया ! अहो देवानुप्रिय ! ऐसी बात हम को मानना भी कलाता नहीं है तो उस का उदश देना या उस का वरना
प्रकाशक-राजाबहादुर लालाखदेवतहायजी ज्वालाप सादज..
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