Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
० अनुवादक बालब मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपीजी +
अंगफालं पडिसंत्रेदेति, सेसं जहा सागरस्स जात्र सयणिजातो अब्भुति २ वासघराओ गिगच्छति २ ता खंडमल्लगं खंडघडगं चगहाय मारामुकोविच काए जामेच दिसिं पाउ भए तामेवदिसि पडिगए ॥ ६९ ॥ ततेणं सा सुकुमालिया जात्र गण से दमपुरिसे तिकडु, ओहयमण जात्र ज्झियायति ॥ ७० ॥ ततेणं सा भद्दा कल्ले पाउन्भू दासचडि सदावेति जाव सांगरदत्तस्स एयमटुं निवेदेति ॥ ७१ ॥ ततेणं स सागरदत्ते तहेव संभंते समाणे जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छति
स्पर्श सागर पुत्रने जैसा अनुभवां था वैसा है अनुभवा यावत् शयन में से उठकर वासगृह में से नीकलकर अपने फटे वस्त्र वगैरह लेकर जैने वध स्थान में से प्राणी मुक्त होने से भग जाता है वैसे ही अपने स्थान चला गया. ॥ ६९ ॥ जब सुकुशलिका को मलुप हुवा कि यह दरिद्री चला गया तब वह पश्चताप करती हुई यावत् आर्तध्यान करने लगी. ॥ ७० ॥ भद्राने प्रभात होते चटिकाओं की बोलाइ और बरबंधू का मुख प्रक्षालन के लिये पानी लेजाने का कहा. वे पानी लेकर वहां गई तो वहां सुकुमालिका पुत्री को ध्यान करती हुई देखी. उनोंने सागग्दत्त श्रेष्ठे की पास आकर सब बात निवेदन की ॥ ७१ ॥ तब सागरदच संभ्रांत बनकर पुत्री के वासगृह में गया, सुकुपालिका पुत्री को अपनी गोद में
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• प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी ०
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