Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ष्टांग नाताधर्म था का प्रथम श्रुनसन्ध
किण्हा जाव मणुष्णा छायाए, तं जोणं देवाणुप्पिया ! एएसि गंदिफलाणं रुक्खाणं मुलाणिवा कद-तया-पत्त-पुप्फ-फल-जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेति, तं माणं तुम्भे जाव वीसमह माणं अकालचेव जीवितातो विवरोविजस्सह; तणं देवगणुप्पिया ! एएसिणं गंदीफलाणं दुरंदरेणं परिहरमाणा अण्णेसि रुक्खाणं मूलाणिय जाव वीसमह तिकटु,घोसेणं पच्चाप्पणति ॥ ९ ॥ तत्थणं अत्ये गतिया पुरिसा धष्णस्स सत्थवाहरत एयमटुं सद्दहति जाव रोयति एयमढें सद्दहमाणा तसिं दिफलाणं दूरंदूरेणं परिहरमाणा अन्नति रुक्खाणं मूलाणिय जाव वीसमंति,
तसिणं अवाए णो भद्दए भवति, ततोपच्छा परिणममाणा २ सुरूवत्ताए भुजो २ E मरना होगा, इस मेहर के कंद, मूल, वगैरह कुच्छ भी खाना नहीं और उन की छाया में विश्राम भी
करना नहीं. यदि इच्छा होवे तो अन्य बृक्षों के पत्र, पुष्यो, खाना और उनकी छाया में विश्राम करना निमसे मृत्यु विना मरण होगा नहीं. यो उद्घोणा करक मुझे मेरी आमा पीछो दो. जाने भी वैसे है करके उनकी अज्ञापछी दी. • ॥ इन में से कितनक पुरुषों घना मार्थह के वचन की श्रद्धा,* पती ते व रूत्रि करने लगे इस मे नंदीफरवृक्ष को दुर से ही त्यगत हुये विचरन लगे, और अन्य वृक्ष के मूल कंद व वगैरह खाने लगे व इन वृक्षों की छाया में विश्राम करने लगे. इन लोगों को ये वृक्षों प.ल्याणकारी हुन नहीं ।
+नंदीफल वक्ष का स्वरहवा अध्ययन 4
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