Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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की अनवादक-बाल ब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋषिजी +
मच्छित्ता समणिग्गथे णिग्गंथीओय सद्दावेति ३ त्ता एवं वयासी-एवं खलु अजा मम अतवासी-धम्मरुईणाम अण. गार पगइभदए जाब विणीए मासं मासण अणिक्खित्तेण तवोकम्मणं जाव नागसिरीए माहणीए गिहे अणुपबिटु ॥ ततणं सा णागसिरी माहणी जाव णिसिरइ ॥ तएणं धम्मरुई अणगारे अहपजत्तमि त्तिकटु जाव कालं अणवखमाणा विहरति ॥ सेणं धम्मरुई अणगारे बहूण वास्गणि सामण्ण परियागं पाउणित्ता आलोइय पडिक्कते समाहि पत्त कालमासे
कालंकिच्चा उट्टे जाव सम्वट्ठसिद्धि महाविमाणे देवत्ताए उबवण्णे, तत्थणं अजहण्ण लगाकर सब साधु माधीयों को बोलाकर कहने लगे कि अही आय: ! मेरा अंतरासी धर्मरुचि अनगार प्रकृतिसे भद्रिक व विनीत था. वह निरंतर मासक्षमण का नए कर के यावत् नागश्रा व ह्मणो के घर में गौचरी के लिय गया था. नागश्रा ब्राह्मणी न स्नेहवाला कडुवे तुम्बे का सब शाक उन के पात्र में डाल दिया. तब धर्मरुचि अणकार ने यथा पर्याप्त जानकर यावत् काल को नहीं च्छते हुए विचर ने लगे धर्मरूचि अणगार बहुत व पर्यंत साधुपना पालकर आलोचना प्रतिक्रपण कर समाधिसीहत काल के अवसर में कालकर ऊंचे सर्वार्थसिद्ध विमान में देवता पने उत्पन्न हुए, वहां जघन्य. उत्कृष्ट तेत्तीस सागरो
प्रकाशक राजाबहादुर काला मुखदव महायजी ज्वालाप्रसादजी.
अर्थ
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