Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
4 अनुवादक लिब्रह्मचारीमुनि श्री अमोल ऋषि
धम्मघोसा थे धम्मई अणगारं चिरगयं जाणित्ता समणे णिग्गथ सदावेति २ एवं बयासी एवं खलु देवाणुपिया ! धम्मरुइ मासखमणपारणगांस सालइयरस जाव गाढस्स णिसिर टुपाए बहिया णिग्गए चिरावेति, तं गच्छहणं तुब्भे देवाणुपिया ! धम्मरुइस्स अणगाररस सव्वतो समंता मग्गणगवेसणं करेह ॥ १९ ॥ तवेणं तं समणा णिग्गंथा जाव पडिसुणेति २ त्ता, धम्मघांसाण थेराणं अतियाओ पडिणिक्खमति २ त्ता धम्मरुइस्स अणगारस्त सव्वतो समंता मग्गणगवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिलो तेणव उवागच्छइ २ त्ता धम्मरुइस्सं अणगारस्स सरीरगं
को गये हुवे बहुत समय हुन जानकर धर्मघोष स्थविरने अन्य श्रपण निर्ग्रन्थों को बोलाये और कहा कि परिठाने का बाहिर गये हैं, और उम नगार की चारों दिशी में गवेषणा करो.
धरुचि अनगार मामक्षमण के पारने में स्नेहयुक्त कटुक शाक को बहुत समय हुवा है. इस मे अहां देवानुप्रिय ! तुम धर्मरूचि
| ॥ १९ ॥ धर्मघोष स्थविर की पास से ऐसा सुनकर श्रमण निर्ग्रन्थों उन की पास से नीकलकर धर्मरुचि { अनगार की चारों दिशि में गवषणा करते हुए जहां स्थंडिल स्थान था वहां आये. वहां धर्मरुचि अनगार के शरीर को प्राण रहित, निश्चेष्ट व जीव रहित देख कर दादा ! अरे अरे ! यह अकार्य ! ऐसा कर के धर्मरुचि
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● प्रकाशक - राजावर दुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादी ●
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