Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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गिरिपडणवा, तरुप्पडगंवा मरुप्पवायंवा; जलप्पवेसंवा जलणप्पसंग, विसभक्ख. गंवा, सत्थवाडणं का, बेहाणसंवा, गिद्धपटुंबा. पवज्जंबा, विदेशगमगंवा, अनभुवग. च्छेजा, नो खलु अहं सागरदत्तस्स गिहं गच्छज्जामि ॥ ५९ ॥ ततेणं से सागरदत्ते सत्थरहे कुटुंतरियाए सागरस्स एयमटुं णिसामेत्ता, लजिए विलेपविटेपि जिणदत्तरस गिहातो पडिणिक्खमइ २ त्ता, जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सुकुमालियं दारियं सहावेइ २ त्ता अके णिवेसेति २ एवं वयासी- किण्णं तब पुत्ता !
सागरएणं दारएणं मक्का अहन्न तुमं तस्स दाहामि जस्मगं तुमं जाव मणामा में जाकर रहूं. पानी में प्रवेश करूं, अग्नि में प्रवेश करूं, विष. भक्षण करूं. शस्त्र में मेरे शरीर को काटडालू पापपात करूं, गृध प्रमुख पक्षियों की पाम भेग शरीर का भक्षण करावं, दीक्षा अंगीकार करूं या विदश में चला ज ऊं. परंतु मैं सागरदत्त के गृह नहीं जाऊंगा. ॥ ५९ ॥ मागरदत्त सार्थवाहने सागर
पार का उक्त कथन उन की भित्ति के अंतर से सुना. सुनकर वह लजित हुमा और
जिनदर मार्थवाद के गृह से नीकलकर अपने गृह आया. वहां अभी पुत्री को बोलाकर अपनी गोद में 12/बैठाइ और कहा कि अहो पुत्री ! सागर पुत्रने तेरा क्यों स्याग किया अब मैं तुझे उप पुरुष को रंगा
पटाकशाताधवथाका प्रथम अनस्कन्ध 41
41+ द्रोपदी का बोहवा अध्ययन 493
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