Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बारामाबहादुरत
अनुपादक-ब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
आरसिय सइंसेचा णिसम्म कै डुप पुरिसे एवं वयासी-किणं देवाणुप्पिया एम दमग पुरिसे महया २ सदेण आरसति ॥ ततेणं से कोटुंबिय पुरिसा एवं वयासी-एसणं सामी ! तसि खड मलगंसि खंडघडगासय एडिजमाणंसि महया २ सदेणं आरसति ॥ ततेणं से सागस्दत्ते सत्यवाहे ते काटाबय पुरिसे एवं वयामी-माण तुब्भे देवाणुप्पिया ! एयरस दमगरस तं खंड जाव एडह जहाण अपत्तियं भवति तेवि तहेव ठवेति २ तस्त दमगरम अलंकारिय कम्म करते २ सयपागसहस्सापागेहि तेल्लेहि अब्भंगेति, अभंगिएसमाणे रक्षिणा गधुवट्टण
एगगत्ताय उव्वदृति,उसिणोदग गंधोदएणं ण्हाणेति,सीउवगणं हाणात २ पम्हलसुकुसे भारडता हुचा सुनकर सागरदत्त सार्थवाहने कम्बत परुषों को बोलाये और उ7 का इस तरह आरडने का कारण पुछा. तब कौटम्पिक पुरुषोंने उत्तर दिया कि उ का बस्त्र वगैरह एति में डाल दने में वह आरडता है. तब सागरदत्त सार्थवाहने कहा कि अहो देवानु प्रिय ! तुम उप दरिद्रो के वस्रो वगैरह कांत में पन डाल दो. क्यों कि वह अपना विश्वास नहीं करता है, इस से उसे वहां ही रहने दा. उन लोगोंने उस को अविश्वास नहीं होवे वैसा किया, उमदन्द्रिीको क्षौर कर्म करवाया, शतपाक पाक तेल से अम्यंगना की, सुगंधित गंध से मर्दन किया ऊष्णोदक सुगंधित पानी से स्नान करवाया।
गापित
सहाली
ला प्रसाद
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