Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारीमुनी श्री अमोलक ऋषिनी
.॥४३॥ ततेणं से जिणदत्ते अन्नयाकयाई सोहणं तिहि करणे विपुलं असणं. ४ उक्खडावति . उवक्खडावेत्ता मित्तणाति आमंतति २ ता जाव समाणना सागरं दारगं हायं जाव सवालंकार विभूसिय कति पुरिससहस्म वाहिणीयं सीयं दुरुहावेति २ मित्त जाति जाव परिवुड सचिट्ठीए सातो गिहाओ णिगच्छइ २ नाचणारे मज्झ मज्झणं जेगेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छति २त्ता सीयातो पञ्चे रुहाइ सागर दारगं सागरदत्तस्स सत्यवाहस्स उवणेति ॥ ४४ ॥
ततणं सागरदत्तेतत्थ वाहे विउलं अगणं ४ उवखडावेति २ त्ता जा . मौन रा. ॥ ४३ ॥ एकदा शुभ तिथि, करण, व नक्षत्र में विपुल अशनादि बनाकर मिष ज्ञाति स्वजनों को बोला कर यावत् सत्कार समान देकर मागरे पुत्र का स्नान कराया, यावत् सर्व अलंकार से विभूषित, किया, फीर उमें महस्त्र परुष उठा सके वैसी शीविका पर बैठाकर मित्र ज्ञाति सहित सब ऋद्धि से अपने गृह से नीकलर चंप नगरी की मध्य बीच में होकर सागरदत्त के गृह आया. वहां से नीचे उतारकर सागरदत्त सार्थबह की पाम सागर पुत्र को लाये. ॥ ४४ ॥ सागरदत्त सार्थवाहने विपुल अशनादि बनाकर यावत् सत्कार सन्मान कर सागरपुत्र को सुकुमालिका कन्या की साथ एक
.भा-राजाबहादुर काढ़ा मुखंदवसहायजा ज्वालाप्रसादजा.
अर्थ
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