Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलम्ब ऋतिमी
पासति एजमणं सिता आसणात अभट्रेति, आसणणं उपणिमतति, .. आमस्थ विसत्थं सहारण वरगयं एवं यासी-भण देवाणुप्पिया ! किमागमणं . पउयण ॥ ४॥ ततेणं से जिगदत्ते सागरदत्तस्म एवं श्यासी- एवं खलु अह देवाणाप्पा ! तब धूयं भद्दाए अत्तयं सकमालियं सागरस्स भाग्यित्ताए घरेमि; जातण जाणह देवाणुप्पिया ! जत्तंवा पतंवा सलाहणिजवा सरिसोवा
संजागो तो देज उणं सुकुमालया सागरस्स दारगस्त, सतेण देवाणुप्पिया ! भग किं है धामन के नियंत्रणा की. आमन पर आश्वस्थ विश्वस्थ हुए पीछे उन को ऐमा पुछने लगे कि अहो देव'नुपिय ! आप का आने का क्या प्रयोजन हैं मो .हो. ॥ ४० ॥ तब मागरदत्तन उत्तर दिया कि अहो देगनुप्रिय ! तुम्हारी पुत्री मुभद्रा. भार्या की आत्मजा मुकुणालिका कन्या का मेरे पुत्र सागर की साथ विवाह करो. अहो दवानु प्रिय ! यदि आप योग्य, प्राप्त, श्लाघनीय व मपान संयाग जानते हो तो तुम्हारी मुहमालि का कन्या इमरे मागर पुत्र को दो. अहा देवानुप्रिय ! इप का हम क्या शुक्ल आप को देवे. ॥४१॥ तब सागर त जिनदत्त का ऐसा कहने लगा कि अहो देवासुप्रिय ! यह मुकपोलका पुत्री हम को एक ही है. वह इष्टकारी, कंतकारी यावत् मनोज्ञ है. इस का नाम है। श्रवण करने से हमको बहुन संतोप होता है तो उन को देखने का कहना ही क्या.: इस से अहो देवानुप्रिय !
भकामकाजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसाद..
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