Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अत्थामे अबले अवीरिए अपरिसक्कार परक्कमे अधारिजेमि त्तिकटु आयार भंडगं एगते ठोति ठवेत्ता, थंडिल्ल पडिलेहेति २, दब्भमथारगं संथाग्इ २ दब्भसंथारगं दुरुहइ २ पुरच्छाभिमुहे संपलियंकनिमन्ने करियल रिग्गहियं एवं वयासी-णमोत्थुणं
आहना भगवंताणं जाव सपेत्ताणं, नमत्थगं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं पुर्दिबपि मए धम्मघोसाणं राणं अंतिए सब्वे पाणाइवाय पच्चक्खाए जावजीवाए जाव परिगहं पच्चक्खामि जावजीवाए जाव खंदतो जाव चरिमेहिं
उस्तास वोसरामि त्तिकटु आलोइय पडिकते समाहिपत्ते कालगते ॥ १८ ॥ ततणं तब आचार के भंडोपकण ( रजोहरण पात्रादि ) को एकान्त में रखकर स्थंडिल की प्रमार्जना की. दर्भ सथारा का बिछोना किया, वहां पूर्वाभिमुख से पर्वकासन से बैठ कर दोनों हाथ जोडकर ए । बाले अरिहंत भगवंत कि जो मोक्ष को प्राप्त हुए हैं उन को नमस्कार होबे, और मेरे धर्माचार्य धर्मोप देशक धर्मघोष स्थविर को मेरा नमस्कार होवो मैंने धर्मघोष अनगार की पास से पहिले भी यावत् जीवन सब प्राणातिपात यावत् सब परिग्रह का प्रत्याख्यान किया है और अब भी जावजीव सब प्राणातिपात
यावत् सब परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं यावत् चरिम उश्वास निश्वास पर्यंत सब शरीर को स्पजता 12 हूं. यो आलोचना, प्रतिक्रमणकर समाधि सहित कास धर्म को प्राप्त हुआ ॥ १८ ॥ धर्मरूवि अगार
षष्टाङ्गज्ञाताधमेकथा का प्रथम अतस्कन्ध
। मोहवा अध्ययन 480
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