Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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११.
षष्टांग ज्ञताधमर्कथा का प्रथम श्रुतस्कंध 444
असणं ४ पडिगाहेत्ता आहारं आहारेति ॥१५॥ ततेणं से धम्मरुई अणगारे धम्मघोसेणं थेरेणं एवं वुत्ते समाणे धम्मघोसरस थेरस्स अंतियाओ पडिाणक्खमति २ त्ता सुभूमिउजाणाओ अदुरसामंते थंडिलं पडिलेहेति थंडिलं पडिलेहेत्ता ततो सालाइयाओ एगविंदु गहाय थंडिल्लति णिसिरति ॥ ततेणं तरस सालतियस्स तित्ता कडुयस्त बहुगेहावगाढस्स गयेणं बहणि पिवीलिगा सहस्साणि पाउ जा जहायणं पिपीलिआ आहारोति सा तहा अकाले चेव जी बयाओ ववरोविजति ॥१६॥ ततेण तस्त धम्धरुइस्म इमेवारूवे अझथिए समुपजित्था अइ ता३ इमस्त तालाइयस्त जाव एगमि ॥ १८ ॥ धर्मघोष स्थविर के ऐसा कहने पा धरूचि अनगार उन की पास से नीकले और सुभूमि भाग उद्यान से दर में स्थं डल भूमि की प्रतेलखता की. वहां उस शक का एक विंद लेकर डाला. उस स्नह युक्त कटु सतुम्बे के शक की गंध से सहस्रो चीटियों आइ ओर जो २ उमे खाने लागा वे तत्काल विना मृत्यु से मरने लगी. ॥ १६ ॥ धर्म रूचि अनगार को ऐसा अध्यवमाय हुमा कि इम स्नेह युक्त कटु सतुम्धी के शाक का एक विन्दु स्थंडिल में डालने से अनेक चींटियों उस को खाकर मर जाती है, तत्र यदि मैं यह सत्र स्थंडिल में डाल दू तो बहुन पाण, भन, जीव व सत्तों का वध होवे, इस पे मुझे ही सममेव ।
पदी का मोरहवा अध्यपन
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