Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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नागसिरीए माहणीए अन्नया भोयणवार एजानेयाविहात्या ॥ ततेणं सा नागसिरी विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडतित्ता एगंमह सालतियं तिन्लाडयं बहुसंभारसं जुत्तंणेहाबगाढं उवक्खडावेइ २ ता एगविंदुय करयलंसि आसाएति २त्ता, तं खारकडुयं अग्वजं विसमयं जाणित्ता, एवं क्यासी-धिरत्थुणं मम नागमिरीए अहन्नाए अपुन्नाए दृभगाए दृभगसत्ताए दुभग लिंबोलियाए जाएणं मए सालए बह संभारं संजुए नहावगाढे उवक्खडिए मुदबक्खाए अभक्ख
एयकए, तं जतिणं मम जाउएयाओ जाणिस्तति तोणं मम खिसस्संति तं जाव एकदा नागश्री के वहां सब का भोजन बनाने का हुवा. नागश्री ब्राह्मणीने विपुल अशादि पनाये और बस मंभार महिन बहुत प्रा डालकर स्नडत एक तुंबडी का शाक भी बनाया. फार उस का । बिन्द हाथ में लकर उन का अनादन किया तो उसे क्षार कटुक अभय व डाल देने योग्य जाना और ए । मन में बेलने लगा कि अहां देवान प्रय! मुझ घिर है. मैं अधन्या, अपुण्या, 'भई व दर्ग मत्ववाली हूं निम्न फल जैसे अनादरणीय हूं क्योंकि मैंने बहुत संभार डालकर व (Vत से परिपूर्ण ऐ ।। दुक तुम्ब। का शाक बनाया. इन में अच्छे द्रव्यों का व्यय किया परंतु खाने
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनी श्री अमोलक ऋषिर्जी.
धराशक-राजाबहादूर लाला मुख्दवमहायजीवालाप्रसादजी
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