Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अर्थ
4+ षटङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का म
अण्ममण्णस्म
• नागमि, भूतसिरी, यक्खसिरी, सुकुमाल जात्र तेसिणं माहणाणं इट्ठा ते विउले माणुस जाव विहरति ॥ ४ ॥ ततेणं तोसें माहणाणं अन्नया कथाई एगयओ समयाणं जाव इमेयारूत्रे मिहोकहानमुलाचे समुप्पजित्था एवं खलु देवाध्विया ! अम्ह इमे विउलंघणं जाव सावएजे अल हि जात्र आसत्तमातो कुल सांतो पकाम दाउं पकामंभोत्तुं, पकामं परिभाएउ, तं सेयं खलु अम्हे देवाणुपिया ! अष्णमण्णस्स गिहे सु कल्लाकलं विउल अरुण ४ उबाक्खडावेइ २त्ता परिभुजमाणा बिहारतर एम पडिसुर्णेति कल्ला कलिं अन्नमन्नस्म गिहसु विउलं असणं ४ उक्खडावैति उत्रक्खडावेत्ता परिभुंजमाणा विहरति ॥ ५ ॥ ततेणं तीस जिन के नाम- १ नाग २ श्री ३ यक्षश्री. बे सुकोमल यावत् उन ब्राह्मणों को इष्ट थी और वे मध्य संबंधी भोगोपभोग भोगवती थी ॥ ४ ॥ एकदा उन ब्रह्मण ने एकत्रित मीलकर एमा वार्ता ला किया कि अहो देवानुप्रेय ! अपने को ऐसा विपुल धन यावत् स्वापनेय मीला है, जिस से मात पीडीतक बहुत देते हुए, बहुन भोगते हुने व बहुत विभाग करते हुवे भी कम होने नहीं इतना है इन मे. अहो देवानुप्रिय ! सदैव परस्पर एक २ गृह में वितीर्ण अशनादि बनाकर जीमना अपन को श्रेय है. सब यह बात मान्य की. और सदैव एक २ के गृह में विस्तीर्ण अशनादि बनाकर भोगते हुने विवरने मे ॥ ५ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
48 द्रोपदी का सोलहवा अध्ययन
५६१
(www.jainelibrary.org