Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ताधर्मकथा का प्रथम श्रुनसन्ध 41
. 'असि हरिए तत्थविय से धारा पला कोमयं सहहिस्मइ, तैयालपुत्ते पासगीचाए -बधित्ता आव रज छिन्ना कोमेयं सहहिस्सति, तेयलिपुत्ते महलियं जाव बंधिता.
अच्छाह जाव उदगंसि अप्पाणं मुक्के तत्थवियणं थाहे जाए कोमेयं सहहिस्सति, तयाल पुत्त सुकसितणकुडे अग्गीविझाए कोमेदं. सहहिस्सति, ओहय मण संकप्पे जा . झियायति॥५६॥ततेणं से पाहिले देवे. पोटिलारू विउन्नति, तेतलिपुत्तरप्त अदूरसा..
संत विचा, एव वयासी हंभो तेतलिपुत्ता पुरतोपवाए पिलुआ हस्थिभयं दुहतो अचक्खुफासे मजकचन गजाने मेरे पर दुष्ट विचार किया है, इस से मैंने मलघुट विष मुख में डाल लिया परंतु उमने कुछ भी असर की नहीं, नीलोत्पल समासवर्ष वाला खङ्ग में मेरी गरदन काटने लगा परंतु कटाइ दी, मले में पाप डालकर परना चाहा परंतु पाश तूट गई, गले में एक बड़ा पत्थर बांधकर पानी में पडा परंतु वहां स्थल होगया और तृण एकत्रित कर उम में अने लगाकर, मरेना. पाहा पतु या अग्नि भी बुझ गया, ऐसी बातों मेरे अकरे की कौन पानेगा. यो निश्व स डालता हुत्र याव आन पान कर रहा था ॥ १६ ॥ तब पोहिल देने पोट्टिका के रूा की चिकुणा की और तेतली. पुत्र का पास रहकर घोलन लगा, अही तैनली 'पुत्र ! भाग वडी ऊंडी खदान है और पीछे से हाथी का भय दोनों बाजु में-अंधकार है, मध्य भाग में पानी की वर्ष होगी, इधर ग्राम अमले जल रहा है।
तेतलीपुत्र का चउदावा अध्ययन
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