Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
+ षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 428
ततेणं ते अभितरठाणिज्जा पुरिता तेयलिणा एवं बुत्ता समाणा हट्ठ, तुट्ठा करयल तहत्ति जेणेव कलायम मूसियारगहे तंगेव उवागया ॥ ६ ॥ ततेणं से कलाए मुसिया तेयलिपुत्तपुरिसे एजमाणे पासइ २ ता हट्ठ तुट्ठा आसणाओ अब्भूतुइ२ चा सत्तट्ट पयाई अणुगच्छइ २त्ता आसणणं उवणिमंतेइ २ त्ता आसरथे वितत्थे मुहासणवरगते अभिंतरठाणिज्जे पुरिसे एवं क्यासी-संदिसहणं देवाणुप्पिया! किमागमणं पओयणं ॥ ततेणं ते अभितरढाणिज्जा पुरिसा कलायंमूसियं एवं क्या पी-अम्हेणं
देवाणुंगिया तवधूयं भहाए अत्तयं पाहिलं दारियं तेयलियुत्तस्स अमच्चस्स भयित्ताए कार्य करनेवाले लोगों तेतली पुत्र की पास से एमा सुनकर हृष्ट तुष्ट हुए और हाय जेडकर बोले ।
आप का वचन तथ्य है. ऐमा करके कलाद सुर्णकार के वहां गये ॥६॥ कलाद सुवर्णकार तेतली पुत्र के पुरुषों को आत हुए देखकर हृष्ट तष्ट हुवा. अपने आसन से उठकर सात आठ पांव मामने ग
और आसन को निमंत्रणा की. फीर आश्वस्थ विश्वस्थ होकर सुखासन पर बैठे पीछे कलाद सुवर्णकार बोला, अहो देवानुप्रिय ! बाप का यहां आने का क्या प्रयोजन है सा कहो. तब वे लेगों उनमें एना बोलने लगे कि अहो दानु प्रिय ! हम तुम्हारी पुत्रा व भद्रा भार्या की पात्मजा पोटिला नामक
# तेतला पत्र का चउदहवा अध्ययन
-
।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org