Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
48
षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 45
वयासी-गच्छदणं तुमं अम्मो! तेयालपुत्त रहस्सियं चेव सद्दावेहि ॥१६॥ ततेणं साअम्म धाती तहत्ति एयमटुं पडिमुणोत्त २ त्ता अंबेउरस्स अवहारेणं णिग्गच्छति जेणेव तैयालिपुतस्स गिहि जेणव तेयालपुत्ते तेणेव उवागच्छइ २ ता करयलं जाव एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पउमावती सदावेति ॥ १७ ॥ ततणं तेयालपुत्त अम्मधाईए अंतिए एयमढे सोच्चाणिसम्म हट्ट तुट्ट अम्मधातीए सई सातो गिहातो णिगच्छति २ त्ता अतेउरस्म अवदारेण रहस्सिय चेव अणुपत्रिसति जगेव पउमावती देवी तेणेव उवागच्छई २ त्ता करयल एवं वयासी-संदि हणं देवाणुप्पिए ! जं मए
काय ॥ १८ ॥ ततेणं पउमावती तेयलिपुत्तं एवं वयासी-एव खलु कणगरहे और कहा अम्मा ! तुम तेतली पुत्र अमात्य को गुप्त रीति मे बोलाने को जावो ॥ १६ ॥ अम्माधात्री इस बात को मुनकर अंतःपुर के छोट द्वार से नीकलकर तेतली पुत्र के गृह आई और ततली पुत्र की पास जाकर हाथ जोडकर बोलने लगी कि आपको पद्मावती राणी पोलात हैं ॥१७॥ अम्मा धात्री की । पाप से ऐसा सुनकर तेनली पुत्र इष्ट तुष्ट हुचा और उस की साथ अपने गृह से नीकलं हर अंत:पुर के 2 छोटे द्वार से गुप्तपमे प्रवेश किया और जहां पद्मावती-राणी थी वह अाया. उसने हाथ जोडकर कहा, के अहो देवानुप्रिये ! मुझे जो करने - योग्य हो सो बनलायो । १८ ॥ तब पावती देवी सेतली ।'
तेती पुत्र का नउदहवा अध्ययन 4.88
4
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org