Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
. २त्ता, महिलाए भारियाए मित्तणाति जाव परिजण विउलणं असणं पाणणं
खाइमणं साइमेण पुप्फ वत्थ जाव पडविसजेति ॥ १० ॥ तते गं से तेयलि पुत्ते पोटिलाए भारियाए अणरत्त अविरत्ते उरालाइ भोगभोगाइं जाव विहरांत ॥११॥ ततेणं स कणगाहेगया,रजेय,रट्रय,बलय,वाहणेय, कोमेय कोट्ठागारेय. अंते उरेय मच्छित्ते । जाए ३ पुते वियगति अप्पेगतियाणं हत्थंगु लयाई छिंदति, अपंगतिय णं हत्थंगुट्ठए छिंदति, एवं पायंगुलियाए, पायंगुट्ठएवि, कन्नसंकुलीओवि, नसापुडाति .फालति एवं अगाइमंगाइ वियगेति ॥ १२ ॥ तएणं तीसे पउमावतीए दवीए अन्नया उस का पाणिग्रहण करके उन के मित्र ज्ञाती स्वजन संधि को विपुल अशन पान खादिम स्मादिभ, पुष्प, वस्त्र वगैरह से सत्कार सन्मान देकर विसर्जित किये.॥१०॥अब वह तेली पुत्र उस पाहिला भार्था में अनुरक्त, अविरक्त व उदार होकर विचाने लगा ॥ ११ ॥ कनकरथ राना राज्य, राष्ट्र. बल, वाहन,
कष्ट गार व अंत:पुर में गृद्ध. मूच्छित व तन्मय बनने से जो कोई पुत्र होवे उस में से कितनेक के हाथी में की अंगुलियों का छेदन कर, कितनक के पांच की अंगुलियों का छदन करे, कितनेक के हाथ के अंगुठ
का छेदन करे, कितनेक के पांच का अंगुठे का छेदन करे, कर्ण की संकली का छदन करे, कितनेक के नातिका-क पुट चाटा कर देवे यो अंगोपांग हीन करे जिस से वह राज्य के लिय योग्य होवे नई ॥१२॥
प्रकाशक-राजाबहादुर माला सुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजा
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