Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
28
962 षष्टांडवाताधर्मव.था का प्रथम श्रतस्कन्ध
भारिया होत्था ॥ तरसणं कलायस्म मूसियारदारयस्स धूया भदाए अत्तया पोटिला णाम दारिया होत्था || रूवेणय जोवणणय उक्किट्ठा उक्किट्ठ सरीरा ॥ ३ ॥ तएणं पोर्टिला दारिया अगयाकय इ हाया मब्बालंकार विभसिया चंडिया चक्रवाल सद्धिं संपरिवडा उपिंपपाम्यवरगया गाम्तलगसि कणगमएणं तिंदूमएणं कीलमाणी विहग्इ ॥ ४ ॥ इमं चणं तयलीपुत्ते अमच्चे हाए आम खंधवरगए महया भडचेडगरह आसवाहणियाए णिज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारस्स गिहस्स अदूर सामंतणं बीईबयइ तएणं तेयालपुत्ते मसियार दारगरस गिहस्स अदूरमामतणं
वाईवयमाणे पोटिलं दारियं उपि आगासतलंगसि कणगमएणं तिंदू यावत् अपगभून था. उस को भद्रा नामक भी थी. उस कलाद मोनार की पुत्री व भद्रा भार्या की
आस्पना पट्टिला नाव की कन्या थी. रूप व यौवन से उत्कृष्ट व उत्कृष्ट शरीरवाली थी ॥३॥ एकदा पहिला पुत्री स्नान कर सर्व अलंकर से विभूहिक बनकर चेटिकायों के परिवार सहित अग्ने पामाद पर रही हुई चांदनी में सुवर्णमय मेंद से क्रीडा करती हुई विचरती थी ॥ ४ ॥ इधर सेनली पुत्र आमात्य स्नान कर अश्वारूढ होकर बडे २ भट चेट व घड स्वारों की साथ कलाद सुवर्णकार के गृह की पास जा रहा था. इतने में उसने पोट्टिला कन्या को प्रासाद की चांदनी में मुवर्णमय-गेंद से क्रीडा.करती हुई।
ततली पुत्र का चउदहवा अध्ययन
:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org