Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
अमुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक जी
पात्रणे ॥ ततेणं अहं अन्नयाकयाइ असाहुदंसणेणय जात्र मिच्छतं विपडिवण्णे ॥ ततेणं अहं अन्नयाकयाइ गिम्हकालसमयंसि जात्र उवसंपजित्ताणं विहरामि एवं जहेब चिंता आपुच्छणं, णंदापुक्खरिणी, वणसंडा; सहातो, तंचेत्र सजाव णंदाए पोक्खरिणीए दद्दुरत्ताए उबवण्गे तं अहोणं अहं अधने अपुण्णे अकयषुण्णेनिग्गंथातो पावणाओ ट्ठे भट्ठे परिभट्ठे ॥ ३२ ॥ तं मेयं खलु ममं सयमेत्र पुत्रपात पंचवाई सतसिखावयाई उप संपजित्ताण विहसितए एवं संपेहेइ २त्ता पाडण्णा-ति पंचान्याई जाव आरुहेइ २त्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिरहति, कप्पति मे जाक अंगीकार किया. एकदा ग्रीष्म ऋतु में अष्टम भक्त तेलाकर के यावत् मैं विचरता था. मैं रात्रि में क्षुधाव पिपासा के परिसर से पराभूत हुवा जिस से एक पुष्करणी बनाने का विचार किया. प्रभान होते श्रेणिक राजाको पुछ कर पुष्करणी बनाइ. उसकी चारों तरफ चार बनखंड बनाये यावत् नंदा पुष्करण में मेंडक प उत्पन्न हुवा हूं अरे मैं अधन्य हूं व पुण्य रहित हू क्यों कि मैं जिन प्राचनसे नष्ट व भ्रष्ट हुआ हूं ||३२|| अब पहले जैसे पांच अनुव्रत यावत् अंगीकार कर विवरना मुझे श्रेय है. ऐन विचार कर पहिले अंकार किये हुवे पांच अनुवर का आराधन करके ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया कि मुझे जीवन पर्यव
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प्रकाशक राजाबादुर लालासुखदेव सहायजी ज्वाला प्रमादजी
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