Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोल खऋषिजी -
जाव पज्जवासामो, तेणं इहभवे परभवे : हिंयाएं जाव अणगामियत्ताए . भविस्सइ ॥ ३५ ॥ ततेणं तस्स ददरस्त बहुजणरस अतिए एयमटुं सांच्चा निमम्म अयमेयारूवे अज्झस्थिए समुप्पज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीर गुणसिलए चेइए समोसढे, तं गच्छामिणं वदामि णमंसामि ॥ एवं संपेहेति २त्ता गंदाओ पुक्खरिणीतो सणियं मणियं उत्तरइ उत्तरइत्ता जेणव रायमगे तेणव उबागच्छइ २ त्ता ताए उक्किट्ठाए ददुरगतीए बीतीवयमाणे जेणेव मम अंतिए तेणेव पाहारेत्थ गमणाए
॥ ३६ ॥ इमंचण सणिएराया भिंभसारे व्हाए कयको उय जाव सवालंकार विभूतिए नमस्कार करने को चल यावन पर्युपामना करें. यह इस भव व परभा में हित सुख का कती व अनुगामी होगा ॥ ३५ ॥ उम पुष्करणी में रहः हुवा मेंडक को बहुत लोगों के पास मे ऐसी बात सुनकर ऐसा अध्यवसाय हुवा कि श्रमण भगवंत महावीर स्वामी गुणशील उद्यान मे पधारे हुवे हैं इम में मैं उन को वंदना नमस्कार करने को जाऊं, एमा विवार कर पुष्करण में में शनैः २ निकला. फीर वहां से राजमार्ग पर आकर मेंडक की स्कृष्ट गति से चलता हुवा मरी पाम आने को निकला ॥३६॥ इधर श्रेणिक राजा भी स्नान कर कौतुक मंगल कर सर्व अलंकार से विभू पा बनकर हाथी की पीठपर
प्रकाशक-गजाबह'दर लाला मुखदव महायजी ज्वालाप्रसादजील
બર્થ
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