Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मनुवादक-मालवमचारी मुनि-श्री अमोलक ऋषिजी -
ततेणं अहं गोयमा ! रायगिहाओ पीडाणक्खमीत, बहिया जणवय- बिहार बिहामि ॥ ९॥ ततेणं से गंदे मणियार सेट्ठी अण्णयाकयाइ असाहुदस गेणय अपज्जुबासणाएय अमणुमासणाएय असुस्सूसणारय सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाजेहिं मिच्छत्त पजवहिं परिवड्डमाणहिं २ मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे जाएयादि होत्या ॥ १० ॥ ततणं गंद माणधार सट्ठी अन्नयाकयाइ गिम्हकालममयसि जेट्टामूलं स मांससि अट्ठमभत्त गिण्हइ २ ता पोसहसालाए जाव विहरति ॥ ११ ॥ ततेणं णंदरम अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि, तण्हा छुहाएय
अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिते ५ धन्नाणं ते जाव ईसर नकलकर बाहिर देश में विहार करने लगा ॥९॥ अब नंद मणिभार श्रेष्टी को साधु के दर्शन, पर्युपामना, अनुशासन, सेना, भक्ति नहीं होने से सम्यक्त्र से हीन होना हुा व पिध्यत्व परिणाप से बढता हुआ मिथ्याती बन गया ॥ १० ॥ एकदा प्रेम ऋतु के ज्येष्ट मास में नंद पणिभारने अप भक्त । (तला) करके पौषधशाला में यावत् विचरने लगा ॥ ११ ॥ अष्टमभक्त तप करते हुए तृष्णा शुधा से पगमूर नंद मणिआर को ऐमा अध्यवपाय हुआ कि जो राजेश्वर वगैरह राजगृह नगर को बाहिर बहुत बावड़ी पुष्करणी याइन् सरसर पंक्तियों बनाते हैं और जिस में बहुत लोग मान करते हैं।
मार्थक-राजाबहादर लाली सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादकी
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