Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
Hit+
P
44
षष्ठ अज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध
कुंभराया मल्ली विदेह रायवरकन्नाए तं दिव्यकुंडल जयलं पिणहति रत्ता पाडेविमेजेति। तं एसणं सामी! अम्हेहिं कुंभगराय भवजलि मजए विदेह रायवर कण्गाए अच्छरएदिद्ध तं नो खलु अन्नेकावितारिसिया देवकनगावा जाव जारािमयाणं मल्लविदह रायवर कण्णा ॥७॥ततणं चंदछाए अरहन्न पामोक्खा सकेग्इ सम्माणेइ२ उसुक्करियरइ, पडिविसजेइ ॥७१॥ततणं चद च्छाएगया वाणियमा जतिलहास दुय सदावेइरत्ता जाव जइबियणं सा सयं रज सुंका ॥ तएणं से दूते हट्टतुटुं जाव पाहारत्थगमणाए ॥२॥ ७२ ॥ तेणं
कालेण तेणं समएणं कुणालाणामं जणवए होत्था, तत्थणं सारथीणाम णयरी होत्था; वैसेही कंपराजा को भी नजरात लिया था. कंभराज ने व कुडलों अपनी विदेह राजवर कन्याको पहना
विमर्जन की. हो स्वामिन् ! इन कंभराजा के भान में मल्ली नारकी विदह राजा की कन्या का रू अन देखा. एसी देव कन्या विसा स्थान दखने में आई. नहीं ॥ ७० ॥ चंद्रन या मनाने अगहन
एख वगिकों का सरकार गिय ! सन्मान किया. महमूल मे मुक्त क के विमानम किये ॥ ७ ॥ वाणिक के निमित्त से चंद्रछाय राजा को पूर्व स्न: उद्गा हुआ. दू को बोला कर बुद्धि राजा जैन सा कहा.
दूत भी प्रतिबुद्धि राजा के दून जैसे दृष्ट तुम हकर जान को नाकला. यह दूसरा दून रवान दुवा काहवा ॥७२॥ स काल उस समय में कुणाल नाम का देश था. उसमें सवस्थी नाम की नगरी बी.
श्रीपल्लन थनी का आठवा अध्ययन +22..
animavana
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org