Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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साहस्सीहि तिहिं परिसा हि सत्तहि अणिएहिं, सत्ताहिं अणियाहिवताहिं सोलसहि आयक्खदर साहसीहिं अन्नेहिय बहु हैं लोगतिएहिं देवहिलविं संपरिवुडा, महया हयणगीय वाइयं जाव रखे भजमाणा विदति।जहा (महा) कारमय, माइच्चा वण्ही वनमाय, गदतोयाय ॥ तयाण, अव्याबाहा, अनिाचा. चास्ट्रिाय ॥ १ ॥१४०॥ ततेणं तेलि लोयंतियाणयदेवाण पत्तेयं २ आसणाई . चलति तहब जाव अरहनाणं णिक्खममाणं सबोहणं करत्तएत्ति, संगच्छामाणं अम्हेहिं मनिस्स अरहओ सबोहणंकरमो तिकटु, एवं संपहेति एव संपत्ता उत्तर पुरच्छिमं
दिसीभागं उब्धियःमुपएणं समोहणति २ संजाई जोयाणाति एवं जहा अर्थ लोकनि देवों के परिवार में वडे २ न टक, मीन व वात्रि यावत् गुरुसे भंग भोगते हुने विचरने हैं।
जनके नाम सारस्त,२ आदित्य.३ वन्दी, ४ वरुण, गर्दतोय, तुम्न.७ अव्य वाथ, ८ अगिव, अररिष्ट ॥४.१॥उनसब लोवानिक देशका आमन क्लायमाना . इवले आधिज्ञान प्रयं ना. आधिचनस मली।
अरिहंत को देखा और उौने अरिहंत को मंवोधन करने का अपना ही चाहार जाना. इस मे 13नि उनकोबोधन करने को जाने का निश्चय किया. एका विचार कर ईशाकून में गो यहां उत्कृष्ट
चक्रेग बनाया और जम्मूद्वीप के भरत क्षेत्र में मिथिला राज्यधानी में कुं। सजा भार में मला
पण हाताधर्मकथा का प्रथम श्रमदान्ध
श्रीमल्लीनाथजी का पाठप अध्ययन 4200
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