Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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निश्री बोला ऋषेत्री
* काशक-नाजाबहादु
अन्नयाकयाइ हाए कपबलिकम्मे जाव अप्पमहग्याभरणालंकिय सरीरे बहृहि, राईसर जाव मत्थवाहपभितीहि सर्हि भोयणमडसि भाषणवलाए सुहासगवरगए. विपुलं. असणं पाणं खाइम साइमं जाव विहरनि; जिमियः भुत्तुत्तरागए जाव सूइभए तं विउलंसि असण पाणं खाइमं साइमं जाव जायविम्हए, त वहवे ईसर जाव पभिइ एवं क्यासी-अहोणं देवाणुप्पिया ! इमे मणुण्ण असण पाणं खाइमं साइमं वणेणं उववेए जाव फासेणं उक्वेए आस्सायणि जे विस्सायणिजे दीवणिजे पीणणिजे
दप्पणिज्जे मदणिजे सविादयगाय पल्हायणिजे ॥ ततेणं वहवे राईसर जाव पमिईओ वह जितशत्रु रामाने एकदा स्नान किया, बलि कर्म किया यावत् अल्प मार व बहुत मूल्यवाला भाभरण अलंकार शरीर पर धारण किया, बहुत ईश्वर यावत् सार्थवाह वगैरह की साय भोजन मंडप में भोजन की सपब में मुखासन पर रहे हुवे विपुल अनादि महिन यावत् विचरने लगे. अपने परिवार की माथ जीकर यावत् मुखप्रक्षालनाद से शूचिभूत हे कर उस विपुट अशन, पान, ख दिम व स्वादिप से यावत् विस्थित हुग. बहुन ईश्वर इत्यादि मब को ऐमा कहने लगा कि ओ देवानुप्रिय ! यह मनोज
पान, खादिम, स्वादिम, वर्ण, गंध. रसव स्पर्श से उषेत है. आसान करने योग्य हैं. विस्ताद करने योग्य है, प्रीतिवत है, मोति उत्तराम करानेवाला है, दर्प उत्पन्न करानेवाला है, पद कराने
ज्वालाप्रसादी
अशन
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