Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
*पटकथा का प्रथम स्
अभिगय जीवाजीवे ॥ ४ ॥ तीसे गं चंनए नए बहिया उत्तरपुरत्थि मे गं एग फरहाद या होत्या, मेयबसारुहिर मंमपूपडलोचडे मयगकलेवर संछण्गे; अणुणे वणणं जाव अमपुण्ग फासेणं; से जहा नामए अहिमडेतिवा. गोमडे वा जाव मय - कुहिय विणिट्ठ किमिण वावण्ण दुरभिगंधकिमिजाला उले संसत्ते, असुइत्रिगयत्रींमत्थ दरिमणिजे मंत्रेया रूसिया ? णो इटुं समट्ठेः एताअतिराए चेत्र जात्र गंधेणं पण्णत्ते ॥ ५ ॥ एवं से जियरूतू राया
प्रधान था. वह राज्य में घुरी समान, जीवाजीव का स्वरूप जाननेवाला श्रमणोपासक था ॥ ४ ॥ उम चंपा नगरी के बहिर ईश नकून में एक पानी से भरी परिखा (खाई ) थी, वह मेद, चरबी, रुधेर, मान, परु के समुह से व्यथी उस में मृतक कलेवरों सडे हुवे थे. वह खाइ अपनोज्ञ वर्ण यात् अपनो स्पर्श वाली थी. जैसे सर्प का मुद्दा, गाय का मुड, यवत् पृतः अथवा तत्काल का मरा हुवा कलेवरों व कीडे से भरी हुई दुष्ट गंध वाली थी, कीडों के समूह मे परिपूर्ण थी, अपवित्र वस्तुओं पक्षी कत्ते वगैरह खाने से उस का देखाव बीभत्म हो रहा था. ऐसी खारच दुर्गन्ध क्या हो ! अहो भगवन् ! यह अर्थ समर्थ नहीं है. परंतु इम से अरिष्टतर यात गंध उस में ही हुई थी ॥ ५ ॥ तत्पश्चात्
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बुद्धिप्रधान का बारहवा अध्ययन
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