Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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॥१०॥ ततेणं से मागंदिय दारया छपा दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहाची निउण प्तिप्योवगया बहुसु पोयवहणसंगमएमु कयकरणा लढा विजया अमृदः अमृढत्या, एंगमहं फलगखडं आमादाते, जसिचणं पदेसात से पं.यम्हणे विवन्न तसिंचणं पई सि एगं महं स्यादी कामदार होता अगाइ जोयणाई आयामक्खिभेणं, अगम इ जायण,इ परिक्खेत्रण नाणदुभ मांडओ देसे, सस्सिरीए. पासाइए परिसन्नि, अनिरूो पडरू। ॥१॥ तस्मणं बहमज्झदेमभाए एत्थणं महं एगे पासायसिए वि हात्था अभुग्गय मासए जा सरिसरीयरूर पासादिए दरिसगिजे, अभिरूवे. पडिरूवं समुद्र में डाने लगी ॥ १०॥ उस समय वे पाकंदिय पुत्र कि जो चतुर, दक्ष, प्राप्त अर्थशले, मध.बी, पुण, शिल्प लीन. जहाज चसोक कार्य में कृतकृत्य, अमूद व अमूढ इसबाल थे उनाने
डा क..ट का पटेय, पकड लिया. जिस विभाग में यह मावा तूट गई उस ही विभाग में एक सपनाम का दू था. अनेक योजनका लम्बा चौहाथा, उसको भोक योजन की परिषिथी, विविध
महार के वृक्ष से मुशम था, २६ शभायपान, दर्शवीय, अभिरूप प्रतिरूप था ॥ ११ ॥ इस द्वीप /*/५ध्य भाग एक मास.द बांसक थ बह-त-वर्णवाला बहुल ऊं यावद अपनी श्री लग से शोभा
पष्टाङ्गताधर्मकय का प्रथम श्रनस्कन्ध
जमक्ष जिमपाल का नया अध्ययन
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