Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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MANलासम्म
भगं मामति रचा पंउन्विा समुग्घाएनं समोहणतिर वा संखजाई जोषणाई. रंट निस्सरह रोचपि तचंपि घेउन्विय समुग्धाएणं समोहतिर चा एगं मई मासरूवं विसति चाते मागदिय दारए एवं बयासी-हंभो. मागदियदारगा भारुहणं देवाणुः लिया! ममंपिटुंसि ॥ ततेणं ते मागरिय दारगा हट्ट तुट्ठा सेलगस्स पणाम करइ रचा सैलगस्सपिट्टि दुख्दा । ततेणं से तलए ते मागवियदारएदुरुढे जाणिचा सत्तटुतल पमाणनेता तं उड्डोहास उप्पयति, ताए उकिटाए तुरियाए दिवाए देवगईए लवणसमुदं मझमझेणं जेणेव अंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वाले जेणेव पाए
जयरीए तेणेव पाहारस्थ गमगाए ॥ ३४ ॥ ततेणं सा रपणदीव देवया योजना बनाया, दूसरी बार भी वैकेय समुदन की जिसमें एक बड़ा अपरूप बनाया, और मादिय पुत्रों को कहा कि मही देवाननिय ! मेरी पीठ मारत होवो. तब वे मादिय पुत्रों द्वारा
करना को प्रणामकाके उन को डिपर अरूढ दर. माकं दिया. पुषों को अपनी पर बैठे दुवे जानकावा या मात भाउताल प्रमाण भाग जाकर म पकड सरिखदीप देवगति से. सण सीबीच में एकर जम्मुईपके बरतक्षेत्र में चंग नगरी की तरफ जाने को नीका ॥ १४ ॥
जिमरक्ष मिनपासकानवा अध्ययरSAY
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