Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मंडप्रासापर्षकथा का प्रथम भुतस्वय
तुझपुरओ, एहि नियत्ताहि जइसि कुविउ खमाहिएक्कावरांहमे ६॥तुमय विगय पण विमल ससिमंडलागारसरिसरीप सारय णव कमलकुमुद कुरलय विमलदलनिकर ससिभनयण वयणं पवासागयाए ससा पेछि ओ ज अवलोयहि ताइओ मम माइजाते पेच्छामि वयणकमल ॥ एवं सप्पणय सरल महुराइं पुणोपुणो कलुगाइ पपणाई जंपमाणीमा पाबामगओ समंमेइ, पावहियया ८ ॥ ३९ ॥ ततेणं सा मिणरस्सिए चलमले तेणेय भमणरवेणं कण्णसुहमणहरेणं, तेदिय सप्पणय
सरलमुहुर भणिएहि संजायविउणराए रयणदीवस्म देवयाए तीसे सुंदर थण जहण वक पाकर. सेरा मुख पहलों सहित निर्वक चंद्र जैमा है, तेरी आँखो श्री युक्त शरद ऋतु के मकमल, कुमुदनी कमळ, नीलोत्पल कमल ममान है, तेरा चंद्र समान मुख अवलोकन करने की मुझे तीव्र । पिपासा है, इस से तू एक ही बार मेरी सन्मुख देख, जिस में है तेरे बदन कमल को एक बार देखळू. इम तराव पापी हृदयवाही प्रज्ञा युक्त सरक मधुर करुणाजनक पचनो बोलती हुई उस की पीछमें जाने लगी. ॥ ३१ ॥ उस के,पूर्वोक्त कान को सुबकारी मनोहर आभूषणों के शब्दों से व प्रेम सहित. सरळ मधु वचन से संचल मनवाला जिनरक्षका प्रेम दुगुना हुवा. और रत्नदीपा देवी के सुंदर स्तन कटि, पचर, हाथ, पांच, नवन, बाण, स, यौवन, श्रीव दीव्य शोभा का स्मरण करता हुवा अथवा
जिनरल जिनपाठ का नववा अध्ययन
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