Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख अधिना
रो जहाणामए-मि समुद्दकुल सी दवदवा नाम रुक्खा पण्णत्ता, कि हो जाव मिउवभया; पत्तिया पुफिया फलिया हरिया रेरिजमाणा सिरीए अतीव २ उबमो. भेमाणा चिटुंति ॥ जयाणं दिविवागा ईसिं पुरेवाया १च्छावाया मंदावाया वायति महा वाया वायंति; तदाणं बहवे दाबद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिटुंति ॥ अप्पेगतिया दाबद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा परिमडियं पंडुपत्त पुप्फ फला सुक्क रुक्खाउविव मिलायमाणा २ चिटुंति ॥ एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं णिगंथोवा
णिग्गंथीवा जाव पवतिए समाणे वहणं समणाणं वहणं समणीणं जैसे समुद्र में दावा नाम के वृक्ष हैं वे कृष्ण वर्णवाले यावत् निकुम्बभूत हैं. पत्र, पुष्प, व फलवाले हरे, व वृक्ष की लक्ष्मी मे अतीच शोभित हुशे रहने हैं. जब प संबंधी किंचित् स्नेह सहित वायु अथवा पूर्व दिशा का वायु, पथ्य व यु, मंद वायु व महा वायु चलना है तथापि बहुन दाबद्रव वृक्ष पर ल, पुष्पवले यात् सग धे मे रहते हैं. उन वय से क्षुब्ध नहीं होते हैं. कितनेक दावद्रा वृता जीर्ण होते हैं, कितनेक सड जाते हैं, कितन्क पीले, पांडुर वर्णवाले पत्र पुष्प फल वृक्ष जैसे म्लान होकर रहते हैं. ऐसे ही अहो आयुष्मन्त श्रमणों ! हमारे माधु साध्वी यान् दीक्षित बनकर बहुत साधु साधी, श्रावक ब श्राविका
.16शक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामादजी.
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