Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुमादक- बलबमचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
वयणकरचरणनयण लावण्णरूप जाध्वण सिरिंचदिवं सरनसउवगहियाई विवोय , विलासया णियाविहसिय सकडक्खदिटिणिस्ससिय मलिय उबललियवियगमण पयणयखिजिय पासादिया थिसरमणे रागमोहिय मतिअवसे कम्मवमगते अवयक्खति मगातो सविलियं ॥ ४०॥ सतेणं जिणरक्खिा समुप्पण्ण कलुणाभावं मच्चुगलस्थलणोझियमई अवयक्खतं तहेव जक्खे भो रेल!
भोहिणा आणि उण सणियं र उब्धिहइ २ णियगापिटाहि विगय सड़े।।११॥तएणं सा रयण युक्त लिंगनादि मुख, स्त्रियों संबंधि चेष्टा, नेत्रादिक के विकार का स्मरण करता हुवा, मुखमकमल के
हास्य, कटाक्ष. पात, निभास डालनेका, पुरुष की इच्छा का निवारण, क्री विनोद, स्थिर होना, गति को चलाकर पागों में गिरपडना, चीडना, प्रब होना, इन सब का स्मरण करता हुआ देवी राग में मोहित बनावा आत्मभाव असकर पोहवश से परवश पहाहमा काँक वशगया हना देवी मन्मुख देखने लगा. मार्ग म पंचालित हुआ. पाछा हटा. ॥ ४० ॥ उस रत्नटीपा देवीपर करुणा भाव से मृत्यु के गल में पडा हुवा लोलुपित मतिशमा जिनरक्ष को देखता हवा शेळग यक्षने अवधिज्ञान से जिस से अपनी पीउपर से शनैः २ सरकाता हुवा दूर किया ॥ ४१ ॥ सी समय वह क्रूर र द्वीपा देव।
..काशक-राजाबहादुर लाला सखदेक्सभयजावालाममामा
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