Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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- लवण समुदं तिसत्तखुत्तो अणुपरियति जं तत्थ तणंवा झाव एडेति. २ त्ता जेणेव । पासायबडिंसए तेणेव उवागल्छीत ते मागंदिय दारए, पासायवडिसए अपासमाणी जणेव पुरच्छिमिल वणसंडे जाव सम्बतो समंता मग्गण गवेसणं करेति तएणं से मागदियदारगाण कत्थई सुइवा २ अलभमाणी २ जेणेव उत्तरिल्ले वसंड एवंचे। पच्छस्थिमिलवि आप अपासमाणी आहिं पउंजति २ ते मार्गदिय दारए सेलएणं सद्धिं लवण समुई मज्झं मझेणं वीइवयमाणे पासति २ सा आसुरचा ४ भसिखडगं गिण्हति गेण्डित्ता सत्त? जाव उप्पयति, २त्ता साए उक्किट्ठाए जणेव मागविव दारगा
तेणेव उगगच्छंति २ त्ता एवं वयासी-हंभो मागंदिया अपत्थिय पत्थिया किणं तुम JEग्न द्वीपा देवी लाण समद्र को इक्कीस वक्त फोर कर जो कच्छ तृण काय वगैरा था उसे यावन् एकांत
में डालकर जहां प्रासादावतंसक था वहां आइ. वहां मादियं पुओं को नहीं देखने-भे पूर्व दिशा के वनखण्ड में बाइ यावत् चारों तरफ मार्ग गवेषना की, परन्तु की किसी स्थान भी शुचि नहीं मीलने से
तर दिशाके वनखण्डमें प्राइ, वहांपर भी उमका पत्ता नहीं मीलनेसे पश्चिम दिशाके पनखण्डमें आई और यहां पर भी नहीं मी ठने से अबधि मान प्रयुजा और अवधि ज्ञान से पलंग यक्षको साथ दोनों मादिया
42 अनुवादक-चालबह्मचारी पुनी श्री अयोगऋपिी
AAMAVA
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
अर्थ
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