Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
•
जी
श्रा अपालक
42 अनुवादक-मालवाचारीमुनि
"बहूहिं पुरिममए हैं रोयमाणेहिं. कामारोह, मायमाण १. नि विललमा.
हिं. एगं म; अंतो जलगयं, गिरिसिहर मामायना मंभगरेरणा मोडयं उझरे। दंडाबलयसय खंडिया करकरस्म रत्न विदा उगया ॥ ततेण तार नभए भिज
माणीए एते यह पुरिसा विउल पणियभंउ मायाए अंतो जलमि निमाभियाबि हत्था : गल गल कर पडगइ, और कचा मृतका का मगर पानी के येग मे क्षण मात्र होजना है। मे ही यह नाव होगई, पूर्वपन में जिन ने पुण्य का मंचय नहीं किया थ ऐसे मनुष्यों के मगेग्य भन्न होने से गोदकमा विकास भ्रमित हुए, महा दुःख के अयान में मात्र को प्राप्त हुए वैसे नाम चर नेवास निर्यमदिक, वाणिज्य करनेवाले व्यापारी और भी उम नवा में काम करनेवाले 1987 अनेक ऊंच नीच लंकावलाप करने लगे. ही प्रकार के कर्ण रग्न व चरों प्रकार
रिया से पूर्ण भरी हुई गवाको पुरुषों के हृदय को रूदन कगती हई अशुवर्षनी हुई. शोक कगनी . अकंद कराती हुई, खदिन बनाती हुई, विलाप करानी हुई, आर्तर र करानी दुई. लवण समुद्र में रहा हु। एक महान पर्वत मे अथवाइ..उम के तू सभ तर गये उस रसद भी तूट गया, | अन्य अनाओं दंड सहन मण्डा गई, एक २ काट के मेंबडो दुकडे होगये, और नावा का जो कच्छ भाग रहा था यह भी भीती हुई, विश्व पानी हुई, बहुत पुरा व रत्नादि किरयाने सहित लवणही
राजाबहादुताला मुखदेव महायश्री मालापानी
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International