Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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- अनुवादक-काल ब्रह्मचारीमुनी श्री अमोलक ऋषिर्जी +
जिगपालएय. जिणरक्खिएय ॥ २ ॥ ततेणं तेसिं मागंदियदारगाणं अन्नयाकयाई एगयउ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पजित्था-एवं खलु अम्हे लवणसमुद्दे पोयवाहणणं एकारसवारा उगाढा सम्वस्थ वियणं लट्ठा कयकज्जा अणहस्म मग्गा पुणरवि णिययघरं हाय मागया ॥ तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! दुवालसंपि लवणसमुदं पोयवहणेणं उगाह तर तिकटु अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेति पडिसुणेत्ता जेणेव अम्मापियरो तेगेव उवागम्छइ २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्ह अम्मायाओ इक्कारम वारा तंचेव जाव निघरं हवमागया, तं इच्छामिणं अम्मयाओ !
तुभहिं अन्भन्नाया समाणा दुवालम लवणममुह पायवहणेणं उगाहित्तए ॥ ४ ॥ ? और २ जिसपाल ॥ २ ॥ उक्त दोनों बालकों ने मिलकर एमा विचार किया कि अपने जहाज से लवण पमुद्र में अग्यारह वक्त प्रयास किया, मब वक्त धन को प्राप्ति की, इच्छिन कार्य किया, और अविध्नपन कुशलता पूर्वक अपन पर पीछे आये. इम स बारहवी वक्त भी जहाजों से लवण समुद्र में प्रवास करना अपने को श्रेय है. थों दोनोंने इस बात का स्वीकार किया, और अपने मातपिना की पास जाकर ऐमा बाले अरोमानपिता! हमने अग्य रह वक्त जहाजों मे लवण मुद्र में प्रयास किया यावत् अपने ग्रह।
प्रकाशक-राजाबहादुर डाला मुबदवमहायजी ज्वालाप्रमासाद जी.
अर्थ
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