Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
.
वारी मुनि श्री अलक ऋषिो
- सकामगणियं किमि च्छयं विलं असणं पाणं खाइमै स इमं बहुणं समणाणय जाव विजति ॥ (गाहा ) परवरिया घो मजद, किमिच्छियं दिजए बहु बिहीयं ।। सुरमयुर देव दाणव, मरंद महियाण निक्ख ॥ १ ॥ १३८ ॥ तलेणं मला अरहा संवच्छरेणं सिन्निकोडिसया अट्टात्तिवहाँति कोडिओ अमिंच सयसहस्माइं, इमेया रूवं मत्य संपयाणं दलयत्तित्ता; निक्ख मामित्तिमणं धारेति ॥ १३८ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतियादवा बमलोएकप्पे स्ट्रिविमाणपत्थडे सएहिं
सएहिं विमाणहि, सएहिं सएहिं पासायवडिप्लएहिं पत्तेयं पत्तयं चउहिं सामाणिय युक्त जैसा चाहे वैसा विस्तीर्ण अशन दि बहु । माधु भादि को देने हुए चिरते हैं और वहां उद्वेषणा करते हैं कि तुम क्या चाहत हो ? जी चाहत हो सो देते हैं. यह दान अपुर भव पते, वैमानिक, दानव पंवर नरेन्द्र चक्रानी वगैहर सबको ग्रह है. अर्थत् ऐसा दान लेोको ये भी अपना हाथ बाहिर नीकालते हैं। ॥३८॥ व भरिहतने एक संवत्सर में तीन अन्न, अठ्यार कर व अस्सीलारव स नेय का दानदेकर दाक्षा अंगीकार करने का मन में धारी हुए। १११॥ उस काल उस समय में ब्रह्मदेवलोक में रिष्ट । विमान के पाथड में लोकानिक देव अपने २ विमान के आने २ पामादावतंसक में चार हजार मा निक, तीन परिषदा, सात अनीक, मात अन काधिपते, सोलह हजार आत्म रक्षक देव, व अन्य बहुत
• पानाजान दर लाला सुखदेवमहायजा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org