Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सत्र
४.४
- अनुवादक-बाल मचाशमान श्री अमोलक ऋषिज
॥ १४५ ॥ तते गं से सके देविदे देवराया कुंभएयराया मल्लिअरहं सिंहासणंसि पुरत् मिमुहं णिवेसति, अट्ठसहस्सेणं सोबणियाणं कलसाणं जाव अभिसिंचंतिततेणं मल्लस भगवओ अभिसेयं वदृमाणे अर्थगतिया देवा मिहिलंच सभितरं वाहिं जाव सम्वत्तो समंत्ता संपरिधाउंति ॥ १४६ ॥ ततेण कुंभएराया दोच्चपि उत्तरावकमाणं जाव सवालंकारविभूसियं करोति के डुबियपुरिसे सदाति २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भादेवाणुपिया!मणोरमंसीयं उबट्टवेहोतेवितहव उववेति ततेणे सक्कं दविंददेवराया अभिआगिएदवे सद्दावेति एव वयासी-खिप्पामंव अणेग
खंभ जाव मणौरमंसीयं उबटुवेह, जाव तेवि साविसीया तंचव सीय अणुमृत्तिका के कल से सिंचन किया. इस तरह मल्ली अरिहंत का अभिक होता था तब कितनेक देवों मिथिला नगरी में बाहिर अंदर यायत् च रों तरफ होडते थे ॥१४६॥ कुभ जाने सल्ली अरिहंत को दूसरी वक्त उनर तरफ बैठाये, स्नान कराया यावत् सर्वालंकार से विभूषित किये. और कटुमक पुरुषों को बोल कर कहा कि अहो देव नुप्रय ! शघ्रमेव मनोरमा नाम शिवका तैयार करा. उनाने वैसे ही है किया. तब शकेन्द्रने आभिगेगी देवताओं को बोलाये और कहा कि अनेक स्तंभवाली यावत् मनोरमा, सशिविका तैपार करो. उनोंगे वो ही किया और यह शिविका पहिल तैयार करायी हुई शिविका में
प्रकाशक राजाबहादर लाला मुखदवसहाय
वाल माजी
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org