Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
- वली उत्तरिल्लं अवसेसा देवा जहारिहं मणोरमं परिवहह ॥ गाहा-पुट्विं उखित्तामाणु
सेहिं, साहवरोम कुर्वहिं, ॥ पच्छा वहंति सीयं, असुरिंद बुरिंदाणागदा ॥ १ ॥ चवल चंचल कंडलधरा, सच्छंदे वेउब्बियाभरणधारी ॥ देविंद, दाणविंदा, वहति सीयं जिणंदस्स ॥ २ ॥ १४९ ॥ तएणं मलस्स अरहओ मणोरमं सीयं दुरूढस्स, इमे अटुट्ठ मंगलगा पुरतो अहाणुपुवीए एवं विणिग्गमा जहा जमालिस्स ॥१५॥ ततेणं मल्लिस्स अरहतो णिक्खम माणस्स अप्पंगइयादेवा मिहिलं आसिय
अभितरं वासंचिहि गाहा जाव परिधावति ॥ १५१ ॥ ततणं मल्लीअरहा जेणेव की ऊपर की बांहा ग्रहण कर चले, और अन्य सब देवों इच्छानुसार उस पालखी को उठाकर चल. पहिले बहुन हर्षित बनकर मनुष्योंने शिविका उठाइ तत्पश्च त् असुरेन्द्र, सुरेन्द्र, व नागेन्द्रन उसे उठ इ. चाल, चंचल, कुंडल धारन करनेवाले अपनी इच्छानुमार वैक्रय बनाये वस्त्र भूषण धारन करनेवाले देव व
नव के इन्द्र बहुत आनंद से शिषिका उठाते हैं ॥ १४९ ॥ मनोरमा शिविका में बैठे हवे मल्ली अरिहन के आठ २ मंगल अनुक्रम से आगे चलन ळग. या दीक्षा उत्सव का मव कथन जैस भगवती सूत्र में अभाली का कहा वैसे ही कहना ॥ १५ ॥ मल्ली अरिहंत के दीक्षा महोत्सव में कितनेक देवों मिथिला नगरी के भाभ्यंतर व बाहर कचरा निकालते थे, सुगंधित जल छिडकते थे, वर्षा वर्षाते थे, यावत् इधर उधर दोडने
•माश राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org