Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अतियए जाव परिवजिए जेणं मम जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवयभुयाए जाव णिवत्तेए तिकटु, तं चित्तगरंथजं आवेइ ॥ ९४ ॥ ततणं माचित्तगरसेणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव मलदिन्नेकुमारे तेणव उवागच्छइ २ त्ता करयलपरिग्गाहिं जाव वद्धावेत्त. एब क्यासी- एब खल मामी ! तस्मचित्तगरस्स इमेयारूवाचित्तकर लडी लडपत्ता आनममन्नागया जरसणं दुप्पयस्मवा जाव णिवतेति, तं माण सामी । तुम्भं तं चित्तगर बाझआणवेह, तं तुभगं सामी ! तस्तचित्तकरस्स अणतयाणुरूव डनिव्वत्तेहाततणं से मल्लदिन्ने कुमार तस्स चित्तगरस्स अंगुहा संडा.
सगं च्छिदारति तओ निवासय आणवेइ॥९५॥ततणं से चित्तगरस्सदारए मल्लदिनेणं अर्थE देव भूत भगिनी का रूप बनायः, ऐमा कहकर उय चित्रकार का वध की आज्ञा दी ॥ ९४ । मब चित्र
का यह बात सुनकर मल्ला दिन कुमार की पा भाये और हाथ मोडकर ऐमा बोले कि हो स्वान् !
उप चित्रकार को चित्रकला में ऐसा लब्ध है कि किती द्विपद चतुगद का एक देश देखने स ह उम * अनुसार उस का मंपूर्ण स्वरूप बनाता है. अहे स्वामिन् ! उम चित्रकार का वध के अशा मत दो.3 उस को अन्य कोई किसी प्रकार दंड दो. तब इस मल्लीदिन कुमारसे उस चित्रकार क कर अंगुष्ट का छेदन कर दश निकाल करा दिया ॥ १५ ॥ वह चित्रकार मल्ल दिन कुमार ने देश निकाल करने से
र षष्टाङ्गज्ञाताधर्मकभा का प्रथम श्रुतर घ
48 मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन ६.४४
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