Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनवादक-पालब्रह्मचारीमान श्री अलक ऋपिजी +
सेसं तहेव सव्वतेणं तुब्भे देवाणुप्पिया! कालमासे कालंकिच्चा जयंते विमाणे उववण्णा ॥ तत्थणं तुभं देसूणाई बत्तीसाइं सागरोवमाई,द्विइ पण्णत्ता ततेणं तुम्भे ताओ देवलोया ओ अणंतर चयं चइत्ता-इहेब जंबूद्दीवेदीव जाव सयाई रज्जाइं उवसंपजित्ताणं विहरइ, ततेणं अहं देवाणुपिया!ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव दाग्यित्ताए पयायाn (गाहा) किंचतयं पम्मट जच तया भो!जयतपवरंमिवच्छा समयणिवद्धं देवाणुप्पियातंसंभरजाइ।१। ॥१२६॥ ततेणंतेसिं जियसत्तु पामोक्खाणं छह राईणं मल्लीए विदेहरायवरकण्णह अंतिए एयभटुं सांच्चाणिसम मुंहणं परिणामेणं पसत्येणं अज्झवमणेणं,लेसाहिविसुज्झमाणीहि तयावराणजणं कम्माण खउवसमाणं ईहापूह जाव सन्निजाईमरणे समुप्पन्न एयमटुं सम्म अभिस
• प्रकाशक-राजापादुर लामा मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजी .
अर्थ
उत्पन्न हुए वहां तुम्हरी कुन्छ कम इत्ती सागरोषम की स्थिति थे, उन देवलोक से तुम चाकर यहां जम्बूद्रप में सावत् अपने २ र ज्य भोगवते रहते हो. और मैं वहां से आयुष्य क्षय कर चवकर यहां पर पुत्रोपने उत्पन्न हुई हूं. अहो श्रेष्ठ विजय विमान में अपर सत्र ने मन में परस्पर संकेत किया था मृत्युलोक में गये पीछे प.तेवोध देना और सब को प्रजित होरा, यह क्या भूल गये. इस से तुम पूर्व जन्म स्परण करो ॥१॥१२६ ॥ जितशत्रु प्रमुख छ राजाओं -ल्ली विदह राजवर कन्या की पास से ऐसा सुनकर शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय विशुद्ध लेइया से उपयोग. लगाते गत भव देखने का ..
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