Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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छत्र
अर्थ
पङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुत+
भारदेवासे जाव असतंच सय सहस्स ति दलइत्तए, तं गछहणं देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवेदीवे भारह वासे मिहिलाएं राहाणीए कुंभगस्स भवणंसि इमेयारूत्रं अत्यसंपायाणं साहराति तार खियामेव ममयमाणं खियं पच्चप्पिणा हे ॥ ततेणं से वेसमणेदवे सणदेविद एवं बुत्ते समाणे हड्डे तुट्ठे करयल जात्र पडिसुणेति २त्ता जंभए देवे सदावेति सदावेत्ता एवं बयासी गच्छहण तब्भे देवाणुपिया ! जंबुद्दीबंदीचे भारहवासं मिहलंराय हाजिं कुंभगस्तरन्नो भवनि तिमि कांडिसय', असातिंच कोडिओ || अतिइंचसयसहस्ताई अयमेयारूयं अत्यसंपयाणं सारह २ ता ममएयमाणत्तियं पञ्चपिह ॥ तते नगादेवा वेसणे जात्र सुणेत्ता, उत्तर पुरच्छिमं दिसिभागं अवक्कमंति२त्ता जात्र कि अहो देवानुमिय ! जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में यावत् उक्त सुवर्णमहोरों की धन संपदा यावत् मुझे मे अज्ञा पीछे दो शकेन्द्रदेव के ऐसा कहने पर वैश्रमण देव हृष्ट तुष्ट हुए यावत् जंक ३ देवताओं को बोलाकर कहा कि अहां देवानुभिय | इल जम्बूद्रीप के भरत क्षेत्र में मिथिला र ज्यधानी में कुंभर ना के बद उक्त महरों रूप अर्थ संपदा का साइरन कर मुझे पेरी अशा पीछी दो. गर्म देवों की ऐना बात सुनकर ईशान कूल में गये वहाँ उत्तर वैक्रेपरूप करके उत्कृष्ट यात्
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+ श्रमल्लीनाथती का आठवा अध्ययन
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