Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
अर्थ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋबेजी
संसार जाव पव्वह अम्हाणं देवाणु पिया! के अन्ने आलंबणेत्रा के आहारवा के अपने पडिबंधेवा जहाचेवणं देवाणुप्पिय.! तुब्भे अम्मं इआतच्चेभवग्गणे बहुसुकज्जे नुय मेढीपमाण जात्र धम्मंधूराहोत्था तहा चैत्रणं देवः णुपिया ! इव्हिप जाव भविस्सह, अम्हेपियण देवाणपिया ! संसार भयविग्गे जाव भीया जमण मरणेणं, देवः णुप्पियाणं सद्धि मुडे भवित्ता जाव पन्त्रयामो॥ १२९॥ततेणं मल्ली अरहा तेजियस्तु एवं पमाक्खे वयासी-जतिणं तुब्भे संसार भयउविग्गा जाब एहिं सद्धिं पत्रयाचे तं गछण तुब्भे देव णुपिया ! मए हैं २ रजेहिं जेटुपुत्रजेद्वावे पुरिससहस्स वाहिणी सीयाओ दुरुइह मम अंतियं पाउब्भवह दीक्षा लेना चाहते हो तो हम को अन्य क्या अवलम्बन व अधार है या प्रतिबंध है. जैसे आप इस से तीसरे भत्र में हमारे बहुत कार्यों में मेढी प्रमाण यावत् धर्मधार थे वैसे ही इस भत्र में होवो. अहो देवानुप्रिये ! हम भी संसार भय से उद्वेग्न बने हुये यावत् जन्म मरण से डरे हुवे हैं. हम भी आपकी माथ मुंडित बनकर यावत् दीक्षा अंगीकार करेंगे ॥ १२१ ॥ तब उन मल्ली अरिहंतने जिनशत्रु प्रमुख { को कहा कि जब तुम संसार भय से उद्विग्न बनकर मत्रजित होना चाहते हो तो तुम अपने अपने २ ज्येष्ठ पुत्र को राज्य पर स्थापन करके सहस्र पुत्र वाहिणी शिविका परं बैठकर
छ ही राजाओं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
राज्य में जाकर
मेरी पास आवो
० प्रकाशक राजाबहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी •
३९४
www.jainelibrary.org