Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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+ षष्टाङ्ग ज्ञातार्धपकथा का प्रथम श्रुनस्कंध 4
अत्तएणं मल्लदिन्नेणंकुमारे णिब्बिए आणत्ते समाणे इहं हवमागए तं इच्छामिणं सामी ! तूब्भं वाहूच्छायाए पडिगहिए जाव परिवसित्तए ॥ ततेणं से अदिंण सतृराया तं चित्तगारदारयं एवं क्यासी-किन्नं तुमं देवाणुप्पिया ! मल्लदिण्णेणं कुमारेणं शिठिसए आणत्ते ? ॥ ततेणं से चित्तगरे अदीणसतुरीयं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मल्लदिन्नकुमारे अण्णयाकयाइ चित्तगरसेणी सद्दावेइ. २ त्ता एवं बयासीतुम्भेणं देवाणुप्पिया ! ममचित्तसभं संचव सव्वं भाणियवं जाव ममसंडासयं छिंदावेति २ ता निविसयं आणवेति ॥ एवं खलु अहं सामी ! मल्लदिन्नेणं कुमारणं निकाल किया है. इस से मैं यहां आया हूं. अहो स्वामिन् ! मैं आप का आश्रय ग्रहण कर यान् यहां रहना चाहन हूं. अदीनशधु राजाने उस चित्रकार के पुत्र को कहा कि तेरेको मल्लीदिन्न कुमारने क्यों देश निकाल लिया ? तब उस चित्रकार पुत्रने राजासे कहा कि अहो ग्वामिन् ! मल्लीदिन कुमारने एकदा मत्र चित्रकारों को बोलाकर कहा कि तुम हाव, भाव सहित चित्रों से मेरी चित्रपमा बनावो. उसमें मैंने एक पां के अंगुष्ट के अनुसार से मल्लोविदेह राजवर कन्याका चित्र बनाया जिससे मेरेपर रुष्ट होकर मेरे अंगुष्टे का छेदन कर मुझ देश.निकाल किया है.. अहो सामिन् ! मल्लदिन कम रन मुझे देश विकाल किया।
422 श्रीमल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन BN
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