Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
થે
42 अनुदकं ब्रह्मचारीमुनि श्री अपो ऋषि+
॥ २१६ ॥ ततेणं से कुंमएराया महिलंरा यहाणि रुद्धं जाणित्ता अग्निता रियाए उड्डाणसालाए सीहाणवरगते तेसिं जियसत्तु पामोक्खाणं छ राईणं छिद्दानिय विवराणिया मम्माणिय अलभसमाणे बहु आएहिए उवाएहि उप्पत्तियाहिं४, बुद्धीहिं परिणाममाणे २ किंचित्रि आयंत्रा उवावा अलभमा जे ओहयमाण संकप्पे जात्र ज्झीयायति ॥ ११७ ॥ इमंचणं मल्लीविदेह रायवरॠण्णा व्हाया जात्र बहु है खज्जाहिं परिवुडा जेणेव कुंभराया तेणेत्र उवागच्छइ २त्ता कुंभयस्स पायग्गहजं करेति, ततेणं ते कुंभएरायामल्लीीर्वदेहेरायत्ररकणा नो आढाति मो परियाणा ते
को चारों दिशाओं में मंधी हुई जानकर आभ्यंतर उपस्थान शाला में सिंहासन पर बैठा हुवा जितशत्रु प्रमख छड़ा राजाओं के छिद्र, विवर, व मर्म विचारने लगा. परंतु उस में कुच्छ भेद नहीं (पालन से चारों प्रकारी बुद्ध से विचार करते हुवे किसी प्रकार का जिस से मन में संकल्प विकल्प करता हुआ यावत् आर्तध्यान ध्याने लगा. {इधर मल्ली विदेह राजवर कन्याने स्नान किया यावत् बहुत खोज से परवरी हुई कुंभ ¥ आई और उन के पांव में पडी. कुंभ राजाने मल्ली कंवरी का बादर सत्कार किया नहीं
उपाय नहीं मीळा ॥ ११७ ॥
राजा की
पाम
यावत् पच्छा
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० प्रकाशक राजानदा
उदय सावजी ज्वालाप्रसादजी
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